RAKHI Saroj

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लेखनी प्रतियोगिता -28-Dec-2022

नादान

नादान थे हम जब बच्चे थे सब 
कहते थे लगता तब हमें भी यही 
होशियारी दिखा हम भी सबको 
छल जाएंगे जब जवानी की सीढ़ी 
हम चढ़ जाएंगे एक नया ‌कल हम 
भी अपने नाम लिख कर खुद को 
जवाज़ कह जाएंगे और फिर हम 
खिल‌खिला कर दूसरों को बुद्धू कह 
कर पेट को थामें दोनों हाथों से लोट 
पोट हो जाएंगे, जब हम बच्चे थे तब 
यह सोच मुस्कुराते थे, नादानी में 
नादान सपनों के रंगों से अपना घरौंदा 
सजा कर नकली फूलों की खुशबू से 
खुद को खुद को नादान बना जाते थे।
        राखी सरोज 


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8 Comments

Sachin dev

30-Dec-2022 06:33 PM

Nice

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RAKHI Saroj

30-Dec-2022 10:58 PM

Thank you

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Renu

30-Dec-2022 08:07 AM

👍👍🌺

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RAKHI Saroj

30-Dec-2022 10:58 PM

धन्यवाद

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Mahendra Bhatt

29-Dec-2022 10:08 AM

शानदार

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RAKHI Saroj

29-Dec-2022 10:10 PM

धन्यवाद

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